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    पितृ पक्ष की महत्ता

    पितृ पक्ष, जिसे आमतौर पर "पितृ पक्ष" या "पितृ पक्ष" के नाम से जाना जाता है, भारतीय धार्मिक परंपराओं में एक महत्वपूर्ण समय है। यह अवधि भारतीय हिंदू कैलेंडर के अनुसार विशेष रूप से पितर (पितर) की पूजा और श्रद्धांजलि अर्पित करने का समय है। पितृ पक्ष आमतौर पर भाद्रपद मास की पूर्णिमा के दिन से शुरू होता है और आश्वयज मास की अमावस्या तक चलता है। इस अवधि के दौरान, परिवारों और व्यक्ति अपने पूर्वजों की आत्माओं की शांति के लिए विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कर्म करते हैं।

    पितृ पक्ष की महत्ता

    पितृ पक्ष की महत्ता भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में बहुत गहरी है। यह समय परिवारों को अपने पूर्वजों को याद करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए अर्पित कर्म करने का अवसर प्रदान करता है। हिंदू धर्म के अनुसार, यह मान्यता है कि इस समय में पूर्वजों की आत्माएं पृथ्वी पर आती हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए समर्पित कर्मों से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

    पितृ पक्ष के दिन और तिथियां

    पितृ पक्ष का आरंभ भाद्रपद मास की पूर्णिमा के दिन होता है। इसके बाद, यह अवधि 15 दिनों तक चलती है और समाप्त होती है आश्वयज मास की अमावस्या को। यह समय विशेष रूप से पितर पूजा और श्राद्ध कर्मों के लिए महत्वपूर्ण होता है। इस अवधि के दौरान प्रत्येक दिन का विशेष महत्व होता है, और विभिन्न तिथियों पर विशेष पूजा विधियाँ और कर्म किए जाते हैं।

    पितृ पक्ष की पूजा विधियाँ

    पितृ पक्ष के दौरान, विशेष रूप से निम्नलिखित पूजा विधियाँ अपनाई जाती हैं:

    1.    श्राद्ध कर्म: श्राद्ध एक प्रमुख विधि है जो पितृ पक्ष के दौरान की जाती है। इसमें पितरों की आत्मा को शांति प्रदान करने के लिए विशेष रूप से अन्न, जल और वस्त्र अर्पित किए जाते हैं। श्राद्ध कर्म पारंपरिक रूप से पितरों के नाम पर किया जाता है और इसमें पंडित द्वारा विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है।

    2.    तर्पण: तर्पण एक और महत्वपूर्ण पूजा विधि है जिसमें पितरों को जल अर्पित किया जाता है। यह कर्म प्रायः पितृ पक्ष के दौरान प्रतिदिन किया जाता है और इसमें पितरों को जल अर्पित करने के साथ-साथ विशेष मंत्रों का जाप भी किया जाता है।

    3.    पिंडदान: पिंडदान एक प्रमुख कर्म है जिसमें विशेष रूप से पिंड (चावल और गुड़ का मिश्रण) पितरों को अर्पित किया जाता है। यह कर्म आमतौर पर पितृ पक्ष के अंतिम दिनों में किया जाता है और इसे विशेष धार्मिक महत्व दिया जाता है।

    पितृ पक्ष की सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताएँ

    पितृ पक्ष की सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताएँ भारतीय समाज में बहुत गहरी हैं। इस समय के दौरान विभिन्न मान्यताएँ और परंपराएँ निभाई जाती हैं:

    1.    पूर्वजों की पूजा: पितृ पक्ष के दौरान, परिवारों द्वारा अपने पूर्वजों की पूजा और श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। यह विश्वास है कि इस समय पूर्वजों की आत्माएं पृथ्वी पर आती हैं और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।

    2.    परिवार और समाज की एकता: पितृ पक्ष के दौरान परिवार और समाज की एकता को बढ़ावा देने के लिए विशेष आयोजन किए जाते हैं। यह समय परिवारों के एक साथ आने और एक दूसरे के साथ समय बिताने का अवसर प्रदान करता है।

    3.    दान और परोपकार: पितृ पक्ष के दौरान दान और परोपकार को बहुत महत्व दिया जाता है। इस समय, गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र और अन्य दान दिए जाते हैं। यह विश्वास है कि दान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है।

    पितृ पक्ष की उपेक्षाएँ और गलतफहमियाँ

    पितृ पक्ष के दौरान कुछ उपेक्षाएँ और गलतफहमियाँ भी होती हैं। कई लोग इस समय को केवल एक धार्मिक कर्तव्य के रूप में देखते हैं और इसके महत्व को पूरी तरह से समझने में विफल रहते हैं। इसके अलावा, कुछ लोग इस समय को केवल एक रस्म मानते हैं और इसे पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ नहीं निभाते।

    निष्कर्ष

    पितृ पक्ष एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक अवधि है जो परिवारों और व्यक्तियों को अपने पूर्वजों की पूजा और श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर प्रदान करती है। इस समय के दौरान विभिन्न पूजा विधियाँ, सांस्कृतिक मान्यताएँ और परंपराएँ निभाई जाती हैं जो भारतीय समाज में गहरी जड़ी हुई हैं। पितृ पक्ष केवल धार्मिक कर्तव्यों को निभाने का समय नहीं है, बल्कि यह एक अवसर भी है परिवारों और समाज को एकजुट करने, दान और परोपकार करने, और पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और सम्मान प्रकट करने का।


    इस साल 17 सितंबर 2024 से पितृपक्ष की शुरुआत हो रही है, 

    जिसका समापन 2 अक्तूबर 2024 को होगा। 

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